NEW STEP BY STEP MAP FOR भाग्य VS कर्म

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उसकी तार्किक व्याख्या इस प्रकार दी जाती है की ….फल की चिंता अर्थात स्ट्रेस या तनाव जब हम कोई काम करते समय जरूरत से ज्यादा ध्यान फल या रिजल्ट पर देते हैं तो तनाव का शिकार हो जाते हैं

आचार्य जी, मैं समझ रहा हूं की आप क्या कहना चाहते हैं पर ये आप भी भली-भांति जानते हैं कि ज्योतिषाचार्य ग्रह नक्षत्र देखकर बता सकते हैं की अच्छा और बुरा वक्त कब आना वाला है और हमें किस तरह की बातों पर ध्यान देना है कि उस समय को हम अच्छी तरह निकाल सकें।

दोनों को अलग-अलग देखने के कारण ही यह झगड़ा चल रहा है। वास्तविकता यह है कि ये दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। इस बात को समझाने के लिए वैसे तो सैकड़ों उदाहरण दिए जा सकते हैं। एक उदाहरण है- एक निर्जन स्थान पर लगे आम के पेड़ से आमों को तोडनÞे के लिए कुछ बच्चे पत्थर फेंक रहे थे। पेड़ के उस पार झाडियÞों के पीछे एक व्यक्ति जा रहा था।

कर्म कितने प्रकार के होते हैं? किस प्रकार संचित कर्म जुड़ा होता है मनुष्य के भाग्य से?

दूसरा उदाहरण- कोई भी परीक्षा हो, चाहे व्यावसायिक या कोई और, उसमें कई ऐसे लोग पास हो जाते हैं जिन्होंने कई अनुत्तीर्ण होने वाले परीक्षार्थियों के मुकाबले कम तैयारी (मेहनत) की होती है। अधिक तैयारी वाले रह जाते हैं, कम तैयारी वाले निकल जाते हैं। ऐसा क्यों? इसका सीधा तार्किक जवाब है कि पेपर बनाने वाले ने उन अध्यायों में से सवाल दे दिए जो कम तैयारी करने वाले परीक्षार्थी ने पढ़े थे जबकि अधिक तैयारी वाले परीक्षार्थी से वे अध्याय किसी कारण से छूट गए थे। यहां यह बताना भी जरूरी है कि पेपर वाले की मंशा न तो किसी खास व्यक्ति को पास करने की थी और न ही click here अनुत्तीर्ण करने की। उसने तो ईमानदारी से अपना कर्म (जिम्मेदारी) किया था। अब यहां कर्म पेपर बनाने वाले का था और भाग्य परीक्षार्थियों का।

भारतसुरक्षित वतन लौटने की खुशी क्या होती है... कोई इनसे पूछे, देख लीजिए वीडियो

रंजीत पासवान जी का एक neutral perspective जो अच्छा लगा यहाँ involve कर रहा हूँ:

 And on other hand superior and laborious university student who significantly pursuits their job and work hard and however they remained jobless.

पर हम किसी लगातार सफल व्यक्ति के ये गुण खुद में उतारने के स्थान पर लगेंगे भाग्य को दोष देने

क्या आप को नहीं लगता हमीं हैं जो भाग्य की ब्रांडिंग करते हैं

मैं-तो फिर आचार्य जी आपने ज्योतिष क्यों सीखी? क्या आप इसे अपनी गलती मानते हैं कि आपने ज्योतिष सीखकर अपना समय बर्बाद किया, या जो भी आपसे ज्योतिष सीख रहे हैं वह अपना समय बर्बाद कर रहे हैं?

मैं-आचार्य जी, मैं लोगों को सही राह दिखाना चाहता हूं, जिससे वह अच्छे कर्म करें और आने वाले समय में अच्छा समय जियें ।

अंत में, अब अगर मेरे विचार आपको तार्किक लगें व् कर्म की ओर प्रेरित करें तो आप इसे क्या कहेंगे … “ मेरा कर्म या मेरा भाग्य “ फैसला आप पर है 

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